Sāhityālocana ke siddhāntaLakshmīnārāyaṇa Agravāla, 1949 - 302 strani |
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Stran 188
... अतः हम उपर्युक्त तत्त्वों पर इन अगले पृष्ठों में विचार करने का प्रयत्न करेंगे । कथावस्तु 1 कहानी में कथावस्तु प्रधान तत्त्व है ...
... अतः हम उपर्युक्त तत्त्वों पर इन अगले पृष्ठों में विचार करने का प्रयत्न करेंगे । कथावस्तु 1 कहानी में कथावस्तु प्रधान तत्त्व है ...
Stran 236
... अतः कोई भी यथार्थवादी - वास्तव में सच्चा यथार्थवादी अपना कोई - न - कोई आदर्श रखता है और इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि ...
... अतः कोई भी यथार्थवादी - वास्तव में सच्चा यथार्थवादी अपना कोई - न - कोई आदर्श रखता है और इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि ...
Stran 287
... अतः ऐसे महान पद पर प्रत्येक लेखक का अधिकार नहीं हो सकता और न प्रत्येक लेखक में उसकी योग्यता ही होता है । अतः हम यहाँ समालोचक के ...
... अतः ऐसे महान पद पर प्रत्येक लेखक का अधिकार नहीं हो सकता और न प्रत्येक लेखक में उसकी योग्यता ही होता है । अतः हम यहाँ समालोचक के ...
Pogosti izrazi in povedi
अथवा अधिक अनेक अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आदि इन इस प्रकार इसमें इसी उनकी उनके उपन्यास उपन्यासकार उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ऐसे ओर कर करता है करते हैं करना करने कला कला का कलाकार कवि कविता कहानी का कारण काव्य किया है किसी की की रचना कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या चरित्र चाहिए चित्रण जब जाता है जाती जाय जिस जीवन की जो तक तथा तब तो था दिया दो द्वारा नहीं नहीं है नाटक ने पं० पर परन्तु पात्र पात्रों प्रकृति प्रभाव प्रयोग प्रेम प्रेमचन्द भारत भाव भावना भी मानव यदि यह या रहा रूप में लेखक वह वास्तव में विचार विषय वे श्री संस्कृत सकता सकते सत्य समाज समाजवाद सम्बन्ध साहित्य का साहित्य में सुन्दर सूरदास सृष्टि से सौन्दर्य स्थान स्पष्ट हम हमारे हमें हिन्दी में ही हुआ हृदय है और है कि हैं हो होता है होती