Sāhityālocana ke siddhāntaLakshmīnārāyaṇa Agravāla, 1949 - 302 strani |
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Zadetki 1–3 od 88
Stran 14
... वह विशुद्ध रूप से प्रकृति का चित्रण करके ही सन्तोष मान लेता है । वह उस चित्रण में अपने भावों का रंग नहीं देता । हिन्दी में स्वर्गीय ...
... वह विशुद्ध रूप से प्रकृति का चित्रण करके ही सन्तोष मान लेता है । वह उस चित्रण में अपने भावों का रंग नहीं देता । हिन्दी में स्वर्गीय ...
Stran 172
... वह स्वयं भी तो एक ग्रामवासी थे । इस कारण भी वह ग्राम्य - जीवन को चित्रित करने में असाधारण रूप से सफल हुये । उनके उपन्यासों में- उनके ...
... वह स्वयं भी तो एक ग्रामवासी थे । इस कारण भी वह ग्राम्य - जीवन को चित्रित करने में असाधारण रूप से सफल हुये । उनके उपन्यासों में- उनके ...
Stran 258
... वह प्राणों को सेज नहीं , जिनमें पीड़ा वेसुध सोती । ऐसा तेरा लोक ... वह अपने प्रेम को सामान्य प्रेम से ऊँचा न उठा सका । वह स्वार्थ भावना ...
... वह प्राणों को सेज नहीं , जिनमें पीड़ा वेसुध सोती । ऐसा तेरा लोक ... वह अपने प्रेम को सामान्य प्रेम से ऊँचा न उठा सका । वह स्वार्थ भावना ...
Pogosti izrazi in povedi
अथवा अधिक अनेक अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आदि इन इस प्रकार इसमें इसी उनकी उनके उपन्यास उपन्यासकार उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ऐसे ओर कर करता है करते हैं करना करने कला कला का कलाकार कवि कविता कहानी का कारण काव्य किया है किसी की की रचना कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या चरित्र चाहिए चित्रण जब जाता है जाती जाय जिस जीवन की जो तक तथा तब तो था दिया दो द्वारा नहीं नहीं है नाटक ने पं० पर परन्तु पात्र पात्रों प्रकृति प्रभाव प्रयोग प्रेम प्रेमचन्द भारत भाव भावना भी मानव यदि यह या रहा रूप में लेखक वह वास्तव में विचार विषय वे श्री संस्कृत सकता सकते सत्य समाज समाजवाद सम्बन्ध साहित्य का साहित्य में सुन्दर सूरदास सृष्टि से सौन्दर्य स्थान स्पष्ट हम हमारे हमें हिन्दी में ही हुआ हृदय है और है कि हैं हो होता है होती