Sāhityālocana ke siddhāntaLakshmīnārāyaṇa Agravāla, 1949 - 302 strani |
Iz vsebine knjige
Zadetki 1–3 od 64
Stran 54
... विषयों को निर्धारित करना साहित्यलोचक का कार्य नहीं है । ईश्वर की यह अखिल सृष्टि ही उसकी कला का विषय है । यह सम्पूर्ण बाह्य जगत ...
... विषयों को निर्धारित करना साहित्यलोचक का कार्य नहीं है । ईश्वर की यह अखिल सृष्टि ही उसकी कला का विषय है । यह सम्पूर्ण बाह्य जगत ...
Stran 60
... विषयों को ग्रहण करते रहे हैं । इस प्रकार काव्य या कविता के कुछ खास विषय अथवा व्यक्ति निर्धारित से हो गये हैं और कवि इन्हीं पर अपनी ...
... विषयों को ग्रहण करते रहे हैं । इस प्रकार काव्य या कविता के कुछ खास विषय अथवा व्यक्ति निर्धारित से हो गये हैं और कवि इन्हीं पर अपनी ...
Stran 104
... विषय प्रधान । जिस कविता में कवि किसी बाह्य विषय की अभिव्यक्ति करता है अथवा किसी वस्तु का वर्णन करता है , उसमें विषय की प्रधानता ...
... विषय प्रधान । जिस कविता में कवि किसी बाह्य विषय की अभिव्यक्ति करता है अथवा किसी वस्तु का वर्णन करता है , उसमें विषय की प्रधानता ...
Pogosti izrazi in povedi
अथवा अधिक अनेक अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आदि इन इस प्रकार इसमें इसी उनकी उनके उपन्यास उपन्यासकार उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ऐसे ओर कर करता है करते हैं करना करने कला कला का कलाकार कवि कविता कहानी का कारण काव्य किया है किसी की की रचना कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या चरित्र चाहिए चित्रण जब जाता है जाती जाय जिस जीवन की जो तक तथा तब तो था दिया दो द्वारा नहीं नहीं है नाटक ने पं० पर परन्तु पात्र पात्रों प्रकृति प्रभाव प्रयोग प्रेम प्रेमचन्द भारत भाव भावना भी मानव यदि यह या रहा रूप में लेखक वह वास्तव में विचार विषय वे श्री संस्कृत सकता सकते सत्य समाज समाजवाद सम्बन्ध साहित्य का साहित्य में सुन्दर सूरदास सृष्टि से सौन्दर्य स्थान स्पष्ट हम हमारे हमें हिन्दी में ही हुआ हृदय है और है कि हैं हो होता है होती