Sāhityālocana ke siddhāntaLakshmīnārāyaṇa Agravāla, 1949 - 302 strani |
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Zadetki 1–3 od 84
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... से मुक्त कर आनन्द - सागर के मनोरम वक्षः स्थल पर विहारार्थ बैठाता है । साहित्य का आधार पाने से मस्तिष्क अपूर्व शान्ति के साथ वस्तु ...
... से मुक्त कर आनन्द - सागर के मनोरम वक्षः स्थल पर विहारार्थ बैठाता है । साहित्य का आधार पाने से मस्तिष्क अपूर्व शान्ति के साथ वस्तु ...
Stran 121
... से अश्लील , असभ्य और अरोचक भाव बढ़ रहे थे । सर्वत्र काम , क्रोध , ईर्ष्या , लोभ आदि दुर्गुणों से कोई दुखी था और कोई सुखी , जिससे प्रजा ...
... से अश्लील , असभ्य और अरोचक भाव बढ़ रहे थे । सर्वत्र काम , क्रोध , ईर्ष्या , लोभ आदि दुर्गुणों से कोई दुखी था और कोई सुखी , जिससे प्रजा ...
Stran 122
Rāmanārāyaṇa Yādavendu. भारतीय नाट्यकला की प्राचीनता भारत में वैदिक काल से हो नाट्य कला का प्रचार है । परन्तु भरत के नाट्य शास्त्र से पूर्व के ...
Rāmanārāyaṇa Yādavendu. भारतीय नाट्यकला की प्राचीनता भारत में वैदिक काल से हो नाट्य कला का प्रचार है । परन्तु भरत के नाट्य शास्त्र से पूर्व के ...
Pogosti izrazi in povedi
अथवा अधिक अनेक अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आदि इन इस प्रकार इसमें इसी उनकी उनके उपन्यास उपन्यासकार उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ऐसे ओर कर करता है करते हैं करना करने कला कला का कलाकार कवि कविता कहानी का कारण काव्य किया है किसी की की रचना कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या चरित्र चाहिए चित्रण जब जाता है जाती जाय जिस जीवन की जो तक तथा तब तो था दिया दो द्वारा नहीं नहीं है नाटक ने पं० पर परन्तु पात्र पात्रों प्रकृति प्रभाव प्रयोग प्रेम प्रेमचन्द भारत भाव भावना भी मानव यदि यह या रहा रूप में लेखक वह वास्तव में विचार विषय वे श्री संस्कृत सकता सकते सत्य समाज समाजवाद सम्बन्ध साहित्य का साहित्य में सुन्दर सूरदास सृष्टि से सौन्दर्य स्थान स्पष्ट हम हमारे हमें हिन्दी में ही हुआ हृदय है और है कि हैं हो होता है होती