Sāhityālocana ke siddhāntaLakshmīnārāyaṇa Agravāla, 1949 - 302 strani |
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Zadetki 1–3 od 89
Stran 36
... ही सौंदर्य है । केवल आत्मा और जोभी आत्मिक हैं , वास्तव में सुन्दर हैं । अतः प्रकृति का सौंदर्य तो आत्मा की स्वाभाविक सुन्दरता की ...
... ही सौंदर्य है । केवल आत्मा और जोभी आत्मिक हैं , वास्तव में सुन्दर हैं । अतः प्रकृति का सौंदर्य तो आत्मा की स्वाभाविक सुन्दरता की ...
Stran 96
... ही है । इससे तो मानसिक प्र ेम का ही महत्त्व स्थापित हो जाता है । विषय- जन्य प्रोम तो क्षण भंगुर है । हमारे समाज का आधार तो यह मानसिक ...
... ही है । इससे तो मानसिक प्र ेम का ही महत्त्व स्थापित हो जाता है । विषय- जन्य प्रोम तो क्षण भंगुर है । हमारे समाज का आधार तो यह मानसिक ...
Stran 236
... ही उसका लक्ष्य नहीं माना जा सकता है । वह चित्रण तो साधन मात्र है , उसका लक्ष्य तो मानव को आनन्द की अनुभूति कराना ही हो सकता है । अतः ...
... ही उसका लक्ष्य नहीं माना जा सकता है । वह चित्रण तो साधन मात्र है , उसका लक्ष्य तो मानव को आनन्द की अनुभूति कराना ही हो सकता है । अतः ...
Pogosti izrazi in povedi
अथवा अधिक अनेक अपनी अपने अभिव्यक्ति आज आदि इन इस प्रकार इसमें इसी उनकी उनके उपन्यास उपन्यासकार उपन्यासों उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक एवं ऐसे ओर कर करता है करते हैं करना करने कला कला का कलाकार कवि कविता कहानी का कारण काव्य किया है किसी की की रचना कुछ के लिए के साथ केवल को कोई क्या चरित्र चाहिए चित्रण जब जाता है जाती जाय जिस जीवन की जो तक तथा तब तो था दिया दो द्वारा नहीं नहीं है नाटक ने पं० पर परन्तु पात्र पात्रों प्रकृति प्रभाव प्रयोग प्रेम प्रेमचन्द भारत भाव भावना भी मानव यदि यह या रहा रूप में लेखक वह वास्तव में विचार विषय वे श्री संस्कृत सकता सकते सत्य समाज समाजवाद सम्बन्ध साहित्य का साहित्य में सुन्दर सूरदास सृष्टि से सौन्दर्य स्थान स्पष्ट हम हमारे हमें हिन्दी में ही हुआ हृदय है और है कि हैं हो होता है होती