Br̥hat sāhityika nibandhaA¶oka Prakā¶ana, 1966 - 1086 strani |
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अतः अधिक अनुभूति अपनी अपने अर्थ अलंकार आत्मा आदि आधार इत्यादि इन इस प्रकार इसके इसी उनका उनके उस उसका उसकी उसके उसी उसे एक कर करता है करते हैं करना करने कला कल्पना कवि कविता कहते कहा का कार्य काव्य काव्य का किन्तु किया है किसी की कुछ के कारण के लिए के लिये केवल को कोई क्योंकि गया है गुण जब जाती जाते हैं जिस जीवन जैसे जो तक तत्त्व तथा तो था थे दिया दृष्टि दो दोनों द्वारा ध्वनि नहीं नहीं है ने पर प्रकार की प्रदान प्राप्त बात भाव भाषा भाषाओं भी भेद मत माना में भी यदि यह है कि यही या ये रस राम वस्तु वह विचार विषय वे व्यक्ति शब्द शब्दों संस्कृत सकता है सकती सकते सत्य सभी सम्बन्ध साथ साहित्य सिद्धान्त से स्वीकार हम हिन्दी ही हुआ हुए है और हो जाता है होता है होती होते हैं होने